शनिवार, फ़रवरी 24, 2007

कितना प्यारा, कितना सुंदर - संदीप खरे

कितना प्यारा, कितना सुंदर
ऐसा अपना दूर ही रहना
मेरे लिये तुम बाद में मेरे
उसी जगह फिर आकर जाना

कभी अचानक सामने आना
साँसों का फिर रूक सा जाना
दर्द भरा रिश्ता है लेकिन
बडा सहारा इसका होना

देखके मुझको वो छिपती है
लेकिन मुझपर यूँ मरती है
मेरे पथ के फुलों पर वो
उसका छुपकर इत्र लगाना

भले ही हम तुम ना मिल पाये
भितर से यूँ मिलकर आयें
प्रश्न कभी उभरा ही नही जो
जवाब तुझमे उसका पाना

मुझे मिला है तेरा होना
तेरे कारण मेरा होना
मै तुमको थामें रहता हूँ
तुम भी मुझको थामे रहना

घिर आते है बादल जब भी
मन होता है मौन और भी
बरसे पानी वहाँ कही पर
और सियाही यहाँ मचलना

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कवि: संदीप खरे
कविता: कितिक हळवे कितिक सुंदर
भावानुवाद: तुषार जोशी नागपुर
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यह गीत आप यहाँ सुन सकते हैं। अवश्य सुने

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी4:41 pm

    सच्मुच प्यारा गीत है भाव भी सूंदर है...

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  2. ! अप्रतिम अनुवाद. संदीपची 'कितीक हळवे..'ही कविता मला खूप खूप आवडणाऱ्या कवितांपैकी एक. तिचा चालीत अनुवाद करता येणं शक्यच नाही असं ठरवूनच टाकलं होतं , कारण 'कितनीं नाज़ुक, कितनीं सुंदर कितनीं सयानी दूरियाँ अपनी' येवढ्यानंतर पुढे काही सुचेचना! :) पण तुमचे सगळेच अनुवाद वाचले. गणवृत्तं तीच ठेवल्यामुळे मूळ चालीत सगळी गाणी किती झकास गाता येताहेत! मला संदीप-सलिलच्या गाण्यांचा ताप जेव्हा "फुल्ल-व्हॉल्यूम" मध्ये चढला होता तेव्हा आसपासच्या अमराठी मैत्रिणींना पकडून सांगावसं वाटे.. "बघा बघा किती छान लिहिलंयन ते" म्हणून. :) आता तुमच्या या जालनिशीचा (आणि जालनिशीलाह!ी) दुवा देत जाईन.

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आपने यह अनुवाद पढा इसलिये आपका बहोत बहोत आभारी हूँ। आपको यह प्रयास कैसा लगा मुझे बताईये। अपना बहुमुल्य अभिप्राय यहाँ लिख जाईये। अगर आप मराठी जानते हैं और आप इस कविता का मराठी रूप सुन चुकें है तब आप ये भी बता सकतें है के मै कितना अर्थ के निकट पहुँच पाया हूँ। आपका सुझाव मुझे अधिक उत्साह प्रदान करेगा।