रविवार, फ़रवरी 25, 2007

अब तो मै बस - संदीप खरे

अब तो मै बस दिन की बही के कागज़ भरता हूँ
रटे रटाए तोते जैसा साईन करता हुँ

हर झंझट से हर टंटे से रहता हूँ मै दूर
जवाब कैसे? असल में मुझको सवाल ना मंजूर
मैने किया है समझौता अब इन सब प्रश्नों से
ना वो सताए और सताए जाए ना मुझसे
नाग की तरह बधीरता की बीन पे हिलता हूँ

अब तो छाती मेरी केवल डर भर लेती है
पर्वत देख के गहराई ही याद आती है
अब कहा की दिलखुश बातें गगन से होती है?
अब तो रात भी पहले जैसी नही मचलती है
बिलंगरी से कलंदरी का गाना गाता हूँ

समझा जब से जीवन की इस भारी उलझन को
इत्र की तरह उड गई मेरी मन की खुशियाँ यों
मेरे दर पे अब तो कोई शौक न आता है
अब तो मेरा सदा बोरियत से ही नाता है
बोरियत से भी अब मै बस बोर हो जाता हूँ

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कवि: संदीप खरे
कविता: आताशा मी फक्त रकाने
भावानुवाद: तुषार जोशी नागपुर

1 टिप्पणी:

आपने यह अनुवाद पढा इसलिये आपका बहोत बहोत आभारी हूँ। आपको यह प्रयास कैसा लगा मुझे बताईये। अपना बहुमुल्य अभिप्राय यहाँ लिख जाईये। अगर आप मराठी जानते हैं और आप इस कविता का मराठी रूप सुन चुकें है तब आप ये भी बता सकतें है के मै कितना अर्थ के निकट पहुँच पाया हूँ। आपका सुझाव मुझे अधिक उत्साह प्रदान करेगा।