अब तो मै बस दिन की बही के कागज़ भरता हूँ
रटे रटाए तोते जैसा साईन करता हुँ
हर झंझट से हर टंटे से रहता हूँ मै दूर
जवाब कैसे? असल में मुझको सवाल ना मंजूर
मैने किया है समझौता अब इन सब प्रश्नों से
ना वो सताए और सताए जाए ना मुझसे
नाग की तरह बधीरता की बीन पे हिलता हूँ
अब तो छाती मेरी केवल डर भर लेती है
पर्वत देख के गहराई ही याद आती है
अब कहा की दिलखुश बातें गगन से होती है?
अब तो रात भी पहले जैसी नही मचलती है
बिलंगरी से कलंदरी का गाना गाता हूँ
समझा जब से जीवन की इस भारी उलझन को
इत्र की तरह उड गई मेरी मन की खुशियाँ यों
मेरे दर पे अब तो कोई शौक न आता है
अब तो मेरा सदा बोरियत से ही नाता है
बोरियत से भी अब मै बस बोर हो जाता हूँ
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कवि: संदीप खरे
कविता: आताशा मी फक्त रकाने
भावानुवाद: तुषार जोशी नागपुर
Is sundar gaane ki aapne anuvad ki, is ke liye bohot dhanyavaad.
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