उषःकाल को घेरे है अंधेरों के जाले
आओ अपनी ज़िंदगीयों की जलालें मशालें
हमें चार किरणों की ये आस क्यों लगी है
अपना जो नही था उसकी याद क्यों जगी है
क्यों ये सूर्य अंधेरों में अपना सर छुपाले
आओ अपनी ज़िंदगीयों की जलालें मशालें
सात स्वर्ग लेके उन्होंने भरली अपनी पेटी
हमे गृहस्थी में मिलती सिर्फ धूल माटी
हम हुए शमशान जहाँ ना कोई फेरा डाले
आओ अपनी ज़िंदगीयों की जलालें मशालें
स्वदेश में ही बंदी जैसा हुआ अपना जीना
अपने दूध से ही जलता देवकी का सीना
क्यों अभागी पुण्य बना है पाप क्यों मज़ा ले
आओ अपनी ज़िंदगीयों की जलालें मशालें
धधक रही बुझकर भी इन चिताओंकी ज्वाला
वधस्तंभ माँग रहे फिर खून का निवाला
हमें मिले स्वतंत्रता में आँसूओं के प्याले
आओ अपनी ज़िंदगीयों की जलालें मशालें
(उषःकाल होता होता, सुरेश भट)
गीतः उषःकाल होता होता (मराठी)
गीतकार :सुरेश भट
गायक :आशा भोसले
संगीतकार :पं. हृदयनाथ मंगेशकर
भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपने यह अनुवाद पढा इसलिये आपका बहोत बहोत आभारी हूँ। आपको यह प्रयास कैसा लगा मुझे बताईये। अपना बहुमुल्य अभिप्राय यहाँ लिख जाईये। अगर आप मराठी जानते हैं और आप इस कविता का मराठी रूप सुन चुकें है तब आप ये भी बता सकतें है के मै कितना अर्थ के निकट पहुँच पाया हूँ। आपका सुझाव मुझे अधिक उत्साह प्रदान करेगा।