रविवार, अप्रैल 18, 2010

सह लिया जो दुख उसे भी - सुरेश भट

सह लिया जो दुख उसे भी
सुख मुझे कहना पडा
ईतना मै सहती गई के
बस मुझे हँसना पडा

पलकों कों ताउम्र मैने
नम नही होने दिया
दूसरों की आँसूओं से
भीगते रहना पडा

लोग आए ही खिसकने
के बहाने सोचकर
हाल अपना पुछने फिर
मुझको ही रूकना पडा

अपना चेहरा ढुँढकर भी
मिल नहीं पाया मुझे
कैसी थीं मैं मुझको भी फिर
याद ये करना पडा

एक दिन खाई थी मैंने
कसम कविता के लिये
राख होकर भी मुझे तो
धुन मे ही बजना पडा

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मूल मराठी गझल: भोगले जे दुःख त्याला
कवी: सुरेश भट
स्वैर अनुवाद: तुषार जोशी, नागपूर

1 टिप्पणी:

  1. पलकों कों ताउम्र मैने
    नम नही होने दिया
    दूसरों की आँसूओं से
    भीगते रहना पडा

    वाह..बहुत खूब एक सुंदर अभिव्यक्ति...बधाई

    जवाब देंहटाएं

आपने यह अनुवाद पढा इसलिये आपका बहोत बहोत आभारी हूँ। आपको यह प्रयास कैसा लगा मुझे बताईये। अपना बहुमुल्य अभिप्राय यहाँ लिख जाईये। अगर आप मराठी जानते हैं और आप इस कविता का मराठी रूप सुन चुकें है तब आप ये भी बता सकतें है के मै कितना अर्थ के निकट पहुँच पाया हूँ। आपका सुझाव मुझे अधिक उत्साह प्रदान करेगा।