रविवार, जून 14, 2009

बुंदों का रोमांच - मंदार चोळकर

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पार इस बारिश के है
सखी तेरा डेरा
कडकती है बिजली और
धडकाती है मन मेरा
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चेहरे की मधुरिमा
अाईने पार छाई
फूल बालों में सजाया
जिन्दगी महकाई
घाव काजल का लगे
पलकों पे कितना प्यार
पार इस बारिश के है
सखी तेरा डेरा
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थाम लो अब अाह को
अाँसूओं थम जाओ
ना रे ना रे ना सखी
ऐसे भी मुरझाओ
गीत मनका मुस्कुराए
होठों पर अब मेरा
पार इस बारिश के है
सखी तेरा डेरा
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हाथों पर मुसकाए ओले
हरियाली छाए
बुंदों का रोमांच मेरे
हाथों पर उग अाए
भीगा भीगा अाँसमा
हाथों में भर लो सारा
पार इस बारिश के है
सखी तेरा डेरा
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मूल मराठी कविता: थेंबांचा शहारा
हिन्दी भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपूर
यू ट्यूब कडी: http://www.youtube.com/watch?v=XWE32rw185A
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