गनपत लाला बीडी पीकर
लकडी कोई चबाता था
इसी जगह बंगला बांधूंगा
मनमे ही कहता रहता था
आँख मीच के दायी वाली
भौ उठाकर बायी तरफ से
जैसे बेसुर तान गवैया
फेंक देता लकडी वैसे
गि-हाइकीकों को ठीक से देता
जिरा धनीया गेहू चावल
तेल बेचना और बनाना
हिसाब उसको आता केवल
सपनों पर धुआँ छाता था
बिडी का कभी मोमबत्तीका
पढता था लेटा रहता था
तुलसीदास रामायण गाथा
दरी पुरानी और एक बोरा
सिरहाने में लेकर रहना
धी की बदबू लेते सोना
आता था बस उसको इतना
हड्डी पसली पीस पीस कर
लाला की जिंदगी बीती
दुकान की जमीन को वो ही
हड्डी हड्डी चुभती रहती
कितनी ही लकडीया लालाने
यही थी फेंकी चबा चबाकर
दुकान की जमीं को वो भी
चूभती रहती रह रह कर
गणपत लाला बिडी दिवाना
पिते पिते यूँ ही मर गया
एक माँगी तो दो का तोहफा
भगवान ने अंधे को दिया
मूल कविता: गणपत वाणी
कवि: बा. सी. मर्ढेकर
हिन्दी भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर
hindi mein kaise likhe?
जवाब देंहटाएंतुषार भाई...नमस्कार...इन्दौर छोटा सा पुणे ही है.मराठी - मालवी ज़ुबान के बाशिंदों का प्यारा सा शहर.इसी शहर की सांस्कृतिक,सांगीतिक,पत्रकारिता और साहित्य हलचलों से जुड़ा हुआ एक साधारण सा इंसान हूं..आपको पढ़ता रहता हूं ..मिला नहीं कभी आपसे लेकिन न जाने क्यों अपनापन सा लगता है आपके ब्लाग्स पर आकर.एक गुज़ारिश..पु.ल. और व.पु.की कालजयी रचनाओं को अनुवाद के रूप में लाइये न कभी आपके ब्लाग पर...हिन्दी में बहुत बड़ा पाठक वर्ग है जो इन दो सर्वकालिक महान क़लमकारों की कारीगरी से वंचित है.यदि आप ऐसा कर पाए तो हिन्दी-मराठी और नज़दीक आएगी और आपको माँ मराठी और मौसी हिन्दी दोनो का शुभाशीष मिलेगा...मी येतो..लवकरच !
जवाब देंहटाएंLiked it. Sane-guruji and Vinoba too would approve.
जवाब देंहटाएंSane-guruji wanted translation of all good things from one language into another.
Vinoba wanted all Indian languages written in a single script.
कविता आवडली. स्तुत्य प्रयत्न.
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