शुक्रवार, नवंबर 24, 2006

जोगन - कुसुमाग्रज

"कुसुमाग्रज" इस नाम से लिखने वाले माराठी के जाने माने कवि मेरे सबसे प्यारे कवियों में से एक हैं। उनकी कविताएँ जिने की उमंग जगातीं हैं। उनके "छंदोमयी" नामक काव्यग्रन्थ से कविता "जोगन" आज प्रस्तुत कर रहा हूँ।


जोगन

जब बुलाओ
आ जाउँगी
माँगो उतना
दे जाउँगी

दे दूँगी फिर
देह विलग सी
छाया बनकर
खो जाउँगी

ताज नहीं
तेरा माँगुंगी
ना रिश्ता ही
बतलाउँगी

मन ही मन में
तेरी होकर
जोगन बनकर
रह जाउँगी

(जोगिण, छंदोमयी, कुसुमाग्रज)


मूल कविता: कुसुमाग्रज
काव्यग्रन्थ: छंदोमयी (मराठी)
स्वैर अनुवाद: तुषार जोशी, नागपूर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी12:47 pm

    सुन्दर कविता का सुन्दर अनुवाद

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  2. बेनामी2:23 pm

    कविता 'जोगन '--
    विरक्त प्रेम का रूप है
    छाया मिश्रित सी धूप है
    भावों का श्रृगार समेटे
    सजा शब्द स्वरूप है।

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  3. बेनामी7:57 pm

    अच्छी अनुवादित रचना ।

    जवाब देंहटाएं

आपने यह अनुवाद पढा इसलिये आपका बहोत बहोत आभारी हूँ। आपको यह प्रयास कैसा लगा मुझे बताईये। अपना बहुमुल्य अभिप्राय यहाँ लिख जाईये। अगर आप मराठी जानते हैं और आप इस कविता का मराठी रूप सुन चुकें है तब आप ये भी बता सकतें है के मै कितना अर्थ के निकट पहुँच पाया हूँ। आपका सुझाव मुझे अधिक उत्साह प्रदान करेगा।