"कुसुमाग्रज" इस नाम से लिखने वाले माराठी के जाने माने कवि मेरे सबसे प्यारे कवियों में से एक हैं। उनकी कविताएँ जिने की उमंग जगातीं हैं। उनके "छंदोमयी" नामक काव्यग्रन्थ से कविता "जोगन" आज प्रस्तुत कर रहा हूँ।
जोगन
जब बुलाओ
आ जाउँगी
माँगो उतना
दे जाउँगी
दे दूँगी फिर
देह विलग सी
छाया बनकर
खो जाउँगी
ताज नहीं
तेरा माँगुंगी
ना रिश्ता ही
बतलाउँगी
मन ही मन में
तेरी होकर
जोगन बनकर
रह जाउँगी
(जोगिण, छंदोमयी, कुसुमाग्रज)
मूल कविता: कुसुमाग्रज
काव्यग्रन्थ: छंदोमयी (मराठी)
स्वैर अनुवाद: तुषार जोशी, नागपूर
सुन्दर कविता का सुन्दर अनुवाद
जवाब देंहटाएंकविता 'जोगन '--
जवाब देंहटाएंविरक्त प्रेम का रूप है
छाया मिश्रित सी धूप है
भावों का श्रृगार समेटे
सजा शब्द स्वरूप है।
अच्छी अनुवादित रचना ।
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