शुक्रवार, जनवरी 26, 2007

सूरज उग आया था - सुरेश भट

सूरज उग आया था


इतना पता चला मुझको, जब चिता पर चढाया था
मौत छुडा ले गई है, ज़िंदगी ने सताया था।

पत्थरदिल ये दुनिया, कुछ कहने से ना बदली
शब्दों का चढावा मैने, खाम्खाह चढाया था।

जो बित गया वो सुखद अनुभव भूल जाते हैं
(क्या मौसम भी जिवन में, कभी लौट के आया था)

जब मैने सुनाई तुमको, मेरी वो प्रेम कहानी
तब मैने नाम तुम्हारा चुपचाप छुपाया था

इस बात का रोना है, के रोते ना बना हमसे
रंग तेरे खाबों का, आसूँओ में मिलाया था

सिर्फ तेरे यादों की मन में बौछार हुई थी
आभास तुम्हारा मैनें सीने से लगाया था

घर खोजने निकला मै, यहाँ वहाँ मै भटका
वो टुटा फुटा निकला जो दरवाजा पाया था

उस रात अकेला मैं जलता ही रहा आशा में
मै बूझ गया जब सुबहा का सूरज उग आया था


मूल कविता: आकाश उजळले होते
मूल कविः सुरेश भट
कविता संग्रहः एल्गार
भावानुवादः तुषार जोशी, नागपूर

गुरुवार, जनवरी 25, 2007

मैं ये आँधी झेल जाउंगा - प्रसन्न शेंबेकर

प्रसन्न शेंबेकर मेरे कवि मित्र हैं। उनकी ये पंक्तियाँ हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करती रहती हैं।


मैं ये आँधी झेल जाउंगा
ऐसा आत्मविश्वास है।
पाँव के निचे मेरी जमीँ
और ये मेरा आकाश है।
पाँव गडाकर मेरा निश्चय
सह्याद्रि सा नीडर है।
आओ आँधीयों आज तुम्हारी
पर्वत के संग टक्कर है।


कवि - प्रसन्न शेंबेकर, नागपुर
अनुवाद - तुषार जोशी, नागपुर