आजाओ मन बसमें नही अब मेरा
तेरी यांदो ने है मुझको घेरा
सांझ ढ़ले जब नदी किनारे
जो पल हमने साथ गुज़ारे
कुछ ना बाकी पास हमारे
सूना घर है सूना आज बसेरा
तेरी यांदो ने है मुझको घेरा
हाथों में हाथों को डारे
आँखो से होते थे इशारे
आज नही तुम संग हमारे
आसपास साया लगता है तेरा
तेरी यांदो ने है मुझको घेरा
उलझी लट गालों पर प्यारी
पवन के झोंके ने है सँवारी
मधुर सावलीं छवी तुम्हारी
आँख मुद कर याद करूँ वो चेहरा
तेरी यांदो ने है मुझको घेरा
मूल कविता: प्रसन्न शेंबेकर, नागपूर
अनुवाद: तुषार जोशी, नागपूर
अनुप जी, मै इन मराठी कवियों का संक्षिप्त परिचय यहा लिखने का प्रयास करुंगा। सुझाव के लिये धन्यवाद।
अनुवाद इतना सुन्दर हुआ है कि लगता ही नहीं कविता अनुवादित है.
जवाब देंहटाएंस्वागत है हिन्दी चिट्ठे जगत में
जवाब देंहटाएंकिसी भी कविता के अनुवाद में भाव और प्रवाह दोनों का निर्वाह करना आसान नहीं है ।
जवाब देंहटाएंआप इन दोनों में सफ़ल हुए हैं।
तुषार,
जवाब देंहटाएंहिन्दी चिट्ठा जगत् में आपका स्वागत है.
मराठी में व्यंग्य बहुत ही सशक्त और समृद्ध है. हम उन्हें भी पढ़ना चाहेंगे. और खूब पढ़ना चाहेंगे. :)