दूर देस गए बाबूजी
गई काम के लिये माँ
भारी निंद से हैं आँखे
मगर घर में कोई ना
मेरी छोटी नन्ही सी जाँ
कैसे संजोके रखी है
यूँही अकेले खेल के
थक हार ये गयी है
बस करो सो जाओ बेटे
कोई कहता भी है ना
भारी निंद से हैं आँखे
मगर घर में कोई ना
पता नहीं क्यों भला
स्कूल में होती है छुट्टी
बात करता ना कोई
कैसे होगी कट्टी बट्टी
खेल रक्खे है सजाकर
कोई खेलता भी है ना
भारी निंद से हैं आँखे
मगर घर में कोई ना
खिडकी से देखने से
जग सारा दिखता है
दरवाजा लांघ के पर
वहाँ दौडना नहीं है
कैसे जाऊँ हाथों में
कोई उंगली भी है ना
भारी निंद से हैं आँखे
मगर घर में कोई ना
-----------------------------------
मूल गीत: दूर देशी गेला बाबा
कवी: संदीप खरे
गायक: सलील कुलकर्णी
अल्बम: अगोबाई ढग्गोबाई
हिन्दी भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपूर
bahut sundar rachana . diwali parv ki hardik shubkamana
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना ।
जवाब देंहटाएंआपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती
बहुत भावपूर्ण..
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.