छत्रपती शिवाजी महाराज के सात जाँबाज सरदारों की दिलेर कहानी श्रेष्ठ कवि कुसुमाग्रज जी ने सात नामक उनकी कविता में चित्रित की है। आज उस कविता को प्रस्तुत करता हूँ।
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वीर मराठे दौडे सात दिवाने - कुसुमाग्रज
धन्य हो गये सुनकर आज कहानी
भाग आये रण से अपने सेनानी
औरतें भी होंगी शर्म से पानी पानी
दिन में ये कैसा घेरा अंधेरे ने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
वो सभी शब्द थे कठोर पीडादायी
जला गये छुकर दिल की गहराई
भागना नहीं है रीत मराठी भाई
ये भुला गये, आये हो क्या मुह दिखाने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
दातों में दबाकर होठ, वीर वि निकले
पठबंध सभी सीने पर हो गये ढीले
आँखों में उठा तुफाँन, किनारे गीले
म्यानोसे निकले तलवारों के सीने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
जब फेरा था मुह और आँखे थी गीली
छह सरदारों ने बात वो दिल पर ले ली
भाले, उठा, चल पडे, विदा भी ना ली
धूल के बादल सात बनाये हवा ने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
भौचक्की सेना देखे ये रह रह के
अपमान बुझाने छावनी में गनिमो के
घुस गये दिवाने हथेली पे सर ले के
उल्कायें बरसी सागर को यूँ जलाने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
आग ही आग थी बाजू से उपर से
सैकडो जगह से उन पर भाले बरसे
भीड में खो गये सात यूँ दिलेरी से
वो सातों पंछी आखिर तक हार ना माने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
पत्थर पर दिखता निशान उन टापों का
पानी में देखो रंग मिला है लहू का
अब तलक क्षितिज पर बादल उस माटी का
सुनो गाता है कोई उन के गाने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
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मूल कविता: सात
गीत: वेडात मराठे वीर दौडले सात
कवि: कुसुमाग्रज
हिन्दी भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर
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इस गीत को तुषार जोशी नागपुर की आवाज़ मे आप यहाँ सुन सकते हैं। अवश्य सुने।
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मूल कविता कि कडिया :
http://ek-kavita.blogspot.com/2007/02/blog-post_9383.html
http://justmarathi.blogspot.com/2007/02/blog-post_1286.html
http://lahanpan.blogspot.com/2006/10/blog-post_17.html
http://shrirangjoshi.spaces.live.com/Blog/cns!2B4F96BCCF74F5BF!295.entry
http://jhingalala.com/marathi/?p=149
http://www.manogat.com/node/8013
सुन्दर कविता है। पढ़ कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
Great contribution. Hindi speaking people should read this
जवाब देंहटाएंफारच छान. मी तात्यासाहेबांच्या 108 कवितांचे हिन्दीत अनुवाद करून आनन्दलोक या नांवावे प्रकाशित केले आहे. पण ही कविता जमणार नाही म्हणून सोडून दिली होती. तुम्ही छान अनुवाद केलाय. अभिनन्दन.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद लीना जी. श्रेष्ट कालाकाराने केलेल्या कौतुकामुळे उत्साह वाढतो.
जवाब देंहटाएंप्रिय भाईृ
जवाब देंहटाएंहिन्दी भ्रारत पर आपकी भेजी कुमाग्रज जी की कविता पढी। ब्लॉग ''अनुवाद'' पर भी गया। अच्छा लगा।
मैं हरिद्वार में जन्मा, पला बढा और रह रहा मराठीभाषी हूं। मराठी का अध्येता तो नहीं पर कभी कभार पढ लेता हूं। याद आया कि बरसों पहले मैंने भी मराठी से हिन्दी कुछ अनुवाद प्रयास किए थे। श्री ना धों महानोर की ''रानात्तल्यां कविता'' से चार पंक्तियां आपके देखें :---
ह्या शेतांने लळा लाविला असा असा की,
सुख दु:खाने परस्परांशी हसलो रडलो।
आतां तर हा जीवच अवघा असा जखड्ला,
मी त्यांच्या हिरवळ बोली चा शब्द जाहलो ।
मैंने इन पंक्तियों की हिन्दी कुछ यों कर दी :----
इन खेतों ने मुझसे ऐसे लाड लडाए,
सुख दुख में हम साथ बैठकर रोए गाए।
अब तो ये मन-प्राण जुड गए इनसे ऐसे,
मैं इनकी हरियल बोली का शब्द बन गया ।
आपके विनोदार्थ --
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सादर,
डॉ. कमलकान्त बुधकर
kk@budhkar.in
http://yadaa-kadaa.blogspot.com
यह अनुवाद पढकर बरसों पहले के वे अनुवाद प्रयास भी याद आ गए जो मैंने अपने आधे अधूरे मराठी ज्ञान के चलते मराठी से हिन्दी में किण् थे। आपके प्रयासों के लिए साधुवाद ।
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