संदीप खरे जी के काव्यग्रंथ "मौनाची भाषांतरे" में "कसे सरतील सये" कविता है. उनके एक अल्बम में इस कविता को उन्होने खुद ही गाया है। ये गीत गुनगुनाने में बडा ही मधुर लगता है।
कैसे काट पाओगे जी
दिन आप मेरे बिना
दिन सारे काटने को आयेंगे
गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे
बारिश की ये धाराएँ, गिनने में दिन जाए
होता जाए मन खाली खाली
होठों पर लिये हँसी, कोई एक पगली सी
बुन रही बिरहा की जाली
भले अभी पास ना है
कोई अपना सा तो है
आप फिर खुष हो जाएंगे
गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे
कौन तेरे छत पर, खडा चुप रह कर
कोई एक दीप जल रहा
अभी शाम हो जाएगी, चांदनी में खो जाएगी
चांद जब आजाएगा वहाँ
सितारों के कोटी कण
अपनी यादों के क्षण
आपकी ये झोली भर जाएंगे
गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे
यहाँ दूर देस में भी, मेरी खिडकी के निचे
सारे फूल बारिश में गिले
तुम तुम, तेरा तेरा, तेरी तेरी, तेरे तेरे
पड़ रहे सारे तेरे ओले
रासते में बिछ कर
तेरे सारे भीगे पल
मखमल सारे बन जाएंगे
गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे
अब बतियाना नहीं, जिते रहना है यूँ ही
होना चाहे मन ये अकेला
बदन में घुल जाए, बिजली पे झूल जाए
तेरी मेरी बिरहाका झुला
आसमाँ में बादल आये
भर रहे सर्द आहें
मचल के बरस के जाएंगे
गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे
(कसे सरतील सये, मौनाची भाषांतरे, संदीप खरे)
मूळ कविता: कसे सरतील सये (मराठी)
काव्यग्रंथ: मौनाची भाषांतरे
कवि: संदीप खरे
भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर
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आप इस गीत को यहाँ सुन सकते हैं। आप अवश्य सुने और अपनी राय दें।
भाव और अनुवाद दोनों सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअनुवाद अच्छा लगा! बधाई!
जवाब देंहटाएंThank you for translating this beautiful song.
जवाब देंहटाएंBeautiful
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