रविवार, अगस्त 12, 2007

बारिष आयी - ग्रेस

मराठी के जाने माने कवि ग्रेस कि लिखी एक जानी मानी कविता "पाउस आला" पाठकों के लिये पेश है।

बारिष आयी

बारिश आयी बारिष आयी
पडते हैं ओले
जंगल में अटके है मवेशी
आओ अब भोले

मेघों के पर्वत गिरते हैं
बजती खाई क्यूँ
गाँव बेचारा बह जायेगा
बाढ लगाई क्यूँ

ठहर ज़रा तो दिल में प्रभो
नभ में कहाँ छिपे हो
लाऊ किनारे जरा बाढ में
छिपी नौकाओंको

गाँव में कोई नही बावला
फिरता रहता है जो
कहीं ना कोई भुजंग शापित
वंश तोड़ता है जो

यहाँ किसी ने रचा था कोई
रिमझिम बारिष गाना
आते जाते यहाँ डालता
वो चिडीया को दाना

~ ग्रेस

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मूल कविता: पाउस आला
कवि: ग्रेस
हिन्दी भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर