मंगलवार, दिसंबर 05, 2006

घेता, - विं. दा. करंदीकर

कविवर्य विंदा करंदीकर इनकी "घेता" कविता मराठी साहित्य में महत्वपूर्ण मानी जाती है। हमें लेते लेते देने की प्रेरणा ये कविता दे जाती है। इस कविता का मूल रूप आप विकिपेडिया पर पढ सकते हैं।



देने वाला देता जाए
लेनेवालों सौगात ले लो

सब्ज पिले मैदानों से तुम
सब्ज-पिली शाल ले लो
सह्याद्री के अस्तित्व से
हिम्मत वाली ढाल ले लो

इन दिवाने बादलों से
दिवाने आकार ले लो
अगणीत प्रश्नों के धरती से
सब उत्तर साकार ले लो

तुफान भरे सागर से तुम
तुफानी झंकार ले लो
शांत सुंदर भीमा नदी से
भक्ति अपरंपार ले लो

देने वाला देता जाए
लेनेवालों सौगात ले लो
लेते लेते देनेवाले के
एक दिन तुम हाथ ले लो

(घेता, विं. दा. करंदीकर)


मूल कविता: घेता
कवि: विंदा करंदीकर
भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर

शनिवार, दिसंबर 02, 2006

आज जा के - सुरेश भट

"जो मुलत: अच्छा कवि होता है वही मराठी में दमदार गज़लें लिख सकता है, इस वास्तविकता का सबूत थे कविवर्य श्री सुरेश भट जी।" रुपगंधा सुरेश भट जी का पहला काव्यग्रंथ है। आज इसी काव्यग्रंथ से एक कविता का भावानुवाद प्रस्तुत है।


आज जा के

धिरे धिरे आ रहा है
मेरी पीडा को आकार
धिरे धिरे उठ रही है
निचीं नज़रें उपर

जैसे तीव्र होता जाए
मेरी यातना का घेरा
वैसे वैसे बढ़ता है
लढ़ने का बल मेरा

सह चुके कितने ही
मिथ्या स्वप्नों की उलझन
चार दानों को मानली
मैने दौलत महान

हो रहा है मुझसे मेरा
परिचय आज जा के
फूट रहे है गितों को
पंख मेरी यातना के

(आता मात्र, रुपगंधा, सुरेश भट)


मूल कविता: आता मात्र (मराठी)
काव्यग्रंथ: रुपगंधा
कवि: सुरेश भट
भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर

शुक्रवार, दिसंबर 01, 2006

कैसे काट पाओगे जी - संदीप खरे

संदीप खरे जी के काव्यग्रंथ "मौनाची भाषांतरे" में "कसे सरतील सये" कविता है. उनके एक अल्बम में इस कविता को उन्होने खुद ही गाया है। ये गीत गुनगुनाने में बडा ही मधुर लगता है।


कैसे काट पाओगे जी
दिन आप मेरे बिना
दिन सारे काटने को आयेंगे

गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे

बारिश की ये धाराएँ, गिनने में दिन जाए
होता जाए मन खाली खाली
होठों पर लिये हँसी, कोई एक पगली सी
बुन रही बिरहा की जाली
भले अभी पास ना है
कोई अपना सा तो है
आप फिर खुष हो जाएंगे

गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे

कौन तेरे छत पर, खडा चुप रह कर
कोई एक दीप जल रहा
अभी शाम हो जाएगी, चांदनी में खो जाएगी
चांद जब आजाएगा वहाँ
सितारों के कोटी कण
अपनी यादों के क्षण
आपकी ये झोली भर जाएंगे

गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे

यहाँ दूर देस में भी, मेरी खिडकी के निचे
सारे फूल बारिश में गिले
तुम तुम, तेरा तेरा, तेरी तेरी, तेरे तेरे
पड़ रहे सारे तेरे ओले
रासते में बिछ कर
तेरे सारे भीगे पल
मखमल सारे बन जाएंगे

गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे

अब बतियाना नहीं, जिते रहना है यूँ ही
होना चाहे मन ये अकेला
बदन में घुल जाए, बिजली पे झूल जाए
तेरी मेरी बिरहाका झुला
आसमाँ में बादल आये
भर रहे सर्द आहें
मचल के बरस के जाएंगे

गुलाब सी अखियों के
पलकों की पंखडी में
ढेर सारा पानी भर लायेंगे

(कसे सरतील सये, मौनाची भाषांतरे, संदीप खरे)


मूळ कविता: कसे सरतील सये (मराठी)
काव्यग्रंथ: मौनाची भाषांतरे
कवि: संदीप खरे
भावानुवाद: तुषार जोशी, नागपुर
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आप इस गीत को यहाँ सुन सकते हैं। आप अवश्य सुने और अपनी राय दें।